सोहबत के मसाइल
हैज़ की हालत में शहवत पूरी करने की सूरत
सवाल
बीवी हैज़ (m.c.) या निफ़ास (बच्चा पैदा होने के बाद आने वाला खून) की हालत में हो और शहवत का बहुत ग़लबा हो तो उसे कैसे पूरा किया जाये ? उस हालत में शहवत की क्या क्या चीज़ें जाइज़ है ? बीवी के हाथ से मनी निकलवा सकते है या नहीं ?
जवाब
हैज़ व निफ़ास की हालत में बीवी की नाफ़ से लेकर घुटनो के अलावह के बदन से फाइदाह उठा सकते है और रगड़ कर मनी भी ख़ारिज की जा सकती है, लेकिन नाफ़ से लेकर गुटनों तक के हिस्से से कपडा दरमियान किये बगैर फाइदाह उठाना जाइज़ नहीं.
अगर शहवत का इतना ग़लबा हो के गुनाह में मुब्तला होने का अंदेशा हो तो बीवी के हाथ से मनी निकलवाना जाइज़ है.
बीवी रज़ामंद न हो तो शहवत तोड़ने के लिए लगातार रोज़े रखें.
किताबुन नवाज़िल ८ /५५४, ५५५ से माख़ूज़
फतवा बिननोरिया करांची फतवा नंबर - १२५४० बा हवाला शामी २ /२९९
सोहबत का ख्वाब देखने पर गूस्ल का क्या हुक्म है ?
जवाब
सोते में सोहबत करने का ख्वाब देखा ओर मजा भी आया लेकिन आंख खुली तो देखा के मनी नही निकली है तो उस पर गुस्ल वाजिब नहीं है. हाँ अगर मनी निकल आई हो तो गुस्ल वाजिब है. और अगर कपडे या बदन पर कुछ भीगा मालुम हो लेकिन ये ख़्याल हो कि ये मज़ी है, मनी नही तब भी गुस्ल करना वाजिब है.
नोट :- मज़ी : उस पानी को बोलते हैं जो पतला हो और शह़वत के वकत बगैर जोश के निकले, और उसके निकलने से शहवत खत्म ना हो बल्कि उसमे इजाफा हो.
मनी : उस गाढा पानी को बोलते हैं जो जोश के साथ निकले जीस के निकलने के बाद शहवत खत्म हो जाए.
दसरी बार सोहबत के लिये गुस्ल अपनी बीवी से एक मरतब़ा
सोहबत करने के बाद अगर दो बारा सोहबत की ख्वाहिश हो तो.... क्या दो बारा सोहबत करने से पहले गुस्ल-ए-जनाबत करना ज़रुरी है ?
जवाब
दो बारा सोहबत करने के लिये गुस्ल करना ज़रूरी नहीं है,
अल-बत्ता गुस्ल करलेना बहेतर है,
और........ अगर गुस्ल ना करे तो..... कम अज़ वुज़ु बना ले, फिर दो बारा सोहबत करे।
वल्लाहु आलम।
फतवा उस्मानी-१/३३२
शर्मगाह भी धो लेवे तो ज़्यादा बहेतर है
(आदाबुल-मुबाशरत)
मुफ्ती इब्राहिम पालनपुरी साहब दा.ब.
शर्मगाह चाटने ओरल सेक्स का हुक्म
मदँ और औरत जब पाक है तो उनकी शमँगाह का जाहिरी हीससा पाक है या नापाक?
अगर हमबिसतरि के दौरान मदँ औरत को अपनी शमँगाह मुँह मे देवे, या चाटे ,या चटवाये उसकी शमँगाह चुमे तो जाईज है या नहीं?
ऐसे मसाइल पूछने में शमँ महसूस होती है लेकिन जरुरतन दरीयाफत किया है माफ फरमाईयें
जवाब.
हजरत सैयद मुफती अबदुरँरहिम लाजपुरी रहमतुललाहअलैही तहरीर फरमाते है की, दिन के मसाईल और अहकाम दरियाफत करने मे शमँ व हया को आड़ न बनाना चाहिए. अगर शमँ व हया का लिहाज कर के दिनी अहकाम की मालूमात ना की जाऐ तो शरई अहकाम का ईलम कैसे होगा? कुरआन मे है, "अल्लाह तआला हक बात कहने मे किसी का लिहाज नहीं करते" बेशक़ शमँगाह का जाहीरी हिस्सा पाक है लेकिन ये जरुरी नहीं की हर पाक चीज़ को मुँह लगाया जाएे और मुँह मे लिया जावे, उसको चुमा जाए ओर चाटा जाए .... नाक की रुतुबात , नीक,सेंड पाक है तो क्या नाक के अंदरुनी हिस्से को जबान लगाना ओर उसके रुतुबात को मुंह मे लैना पसंदीदा आदत हो सकती है? ओर उसकी ईजाजत हो सकती है? पाखाना की जगह का जाहिरी हिस्सा भी नापाक नहीं. पाक है तो क्या उसको भी चुमने चाटना की ईजाजत होगी?..... नहीं हरगिज़ नहीं...... ईसी तरह मदँ की अपनी शमँगाह औरत के मुँह मे देना जाईज नहीं. शखत मकरुह व गुनाह है.........
जिस मुंह से वह अल्लाह का नाम लेती है'क़ुरआन पढ़ती है, हुजुर सललाहु अलयही व सललम पर दुरुद शरीफ पढ़ती हे ऊस मुंह मे नापाकी देने को कैसे गवारा किया जा सकता है?
असतगफिरुललाह...........
शायर कहता हैं. (फारसी शेर का तजुँमा)
हजार बार घौऐ अपने मुंह को मुश्क व गुलाब से़.
फीरभी तेरा नाम लैना बहुत ही बेअदबी है.
ये गैर कौमौ का कलचर है ओर प्रिंट ओर ईलेकटोनीक मीडिया की गलत इस्तेमाल की नहूसत है. जौ ईसलामी मिजाज़ के बिलकुल खिलाफ़ है. शमँगाह चुमना कुतौं / बकरो वगैरह हैवानीयत की खसलत के मुसाबह कॉपी है. ओर मुंह मे देना तो अैसी बुरी चीज़ है की नर जानवर भी अपनी माँदाओ के साथ ऐसा नहीं करते.... ये तो उस सुरत मे जब मदँ की शमँगाह की सखती पैदा ना हुई हो ... ओर सखती पैदा हो गई हो फिर बीवी की मुँह मे शमँगाह दी जाये तो मज़ी ( मनी से पहले निकलने वाला पानी) का निकलना यकीनी है. और मज़ी गलीज़ नजासत ओर सखत नापाक है. नापाकी को मुँह मे देना और लेना हराम हे. ओर आज कल की गैरौं की तहज़ीब की नक़ल कर के
मुखमैथुन करना यानी मुंह मे मनी खारिज करना सखत हराम ओर ईऩतेहाई घीनावनी हरकत है.
फतावा रहीमीयह जीलद 10/178 ब हवाला आलमारी हजफौ ईजाफे के साथ.
जामिया बिनौरीआ कराची. सीरियल नं. 9868.
अल्लाह तआला पूरी उम्मतकी गैरौंकी तहज़ीब और मीडिया के गलत इस्तेमाल से पुरी हिफाज़त फरमाए...... आमीन.......