तलाक़ के मसाइल
तीन तलाक़ एक साथ देने का हुक्म
बाज़ लोग तीन (3) तलाक एक साथ देते हैं. एसे लोगों के बारे में ईस्लाम क्या कहता है ?
जवाब
एस् लोगो के बारे में हदीसमें बडी नाराजगी के ईजहार कीया गया है. हजरत महमूद बिन लबिद फरमाते है के हुजूर (सल.) के सामने एक ऐसे सख्श का ज़िक्र गुना जिसने अपनी बीवी को तीन तलाक एक साथ दी थी. हुजुर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम सुन गुस्से में खड़े हो गये, और फ़रमाया क्या क़िताबुल्लाह - क़ुरान से खेल ओर मज़ाक कीया जा रहा है? हालाके मैं तूममें मौजुद हूं.यहां तक के एक सख्श खड़ा हुआ ओर उसने कहा, या रसूलुल्लाह! में उसे कत्ल कर दुं ?
इस हदीसमें एक सहाबीने एसे आदमी को कत्ल के काबील समजा, लेकिन हुजुर (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उसकी इज़ाजत तो नहीं दी. हुजुर صل اللہ علیہ وسلمजो सिर्फ शरीयत के खिलाफ ही कामों पर गुस्सा फरमाते थे, ओर गुस्सेमें खड़े हो जाना ओर इसको कुरान के साथ खिलवाड़ करार देना, अल्लाह ओर उसके रसुुल صل اللہ علیہ وسلم की सख्त नाराजगी की दलील ओर बहुत डरने की चीज है.
नसई किताबुत्त तलाक़.
हजरत अनस फरमाते है की, हजरत उमर (रजी.) के पास कोई ऐसा सख्त लाया जाता जिसने अपनी बीवी को एक साथ तीन तलाक़ दी है, तो आप (रजी.) उसकी कमर पर कोड़े मारते थे.
फतहुल बारी 9/315.
हाफीज़ने कहा इस हदीस की सनद सहीह है.
फिक्ही मकालत 3/187 से मअखुज़
अगर ईस्लामी हुकूमत हो तो बादशाह को ऐसे आदमी को कोडे़ लगाने वग़ैरह सजा देने की इजाज़त साबित होती है.
तीन तलाक़ एक साथ मैं देना सख्त हराम ओर कबीरह गुनाह है. एक कबीरह गुनाह जहन्नम में ले जाने के लिए काफी है.
नोट :- तीन तलाक एक साथ दी तो वाकिया हो जाती है, हमारे मआशरे की ये बुराई दुर करना ये उलमा ए किराम का काम है,ये मसला कुरान से साबित है.अल्लाहने कानून क़यामत तक के हालात को देख कर बनाया गया है, उसमे गलती नहीं हो सकती.इन्सान का कानून हो तो उसमे गलती हो सकती है इसलिए बदला जाता है.अल्लाह के कानून मै गलती नहीं हो सकती गलती करना ऐब है. और अल्लाह हर ऐब से पाक है.
ईसलाममें तलाक देने का ईखतयार सिफँ मदोँ को है. औरतो को कयुं नही़ं ?
जवाब
1. मदँको औरत पर अल्लाह ने एक क़िस्मकी बरोतरी दी हे. क्यों के के शादी के बाद औरत का महर, वलिमे का खचँ, ओर बीवी बचचौ के खाने-पीने, कपडे व मकान वग़ैरह का खचँ, ईसलाममें मदँके जिम्मे रखा है. अगरचे औरत मालदार हो ओर कमाती हो, ओर अपना खचँ खुदभी ऊठानेके काबील हो तो भी खर्च की जिम्मेदारी मदँसे माफ नही होती है. ओर अक्सर औरतौं के मुकाबले मै ईनतेजामी सलाहियत, अक़ल समझदारी, गुस्से पर कनटो्ल ? कुववते बरदासत, रंज व गम से जल्दी मुताससीर न होना, ये तमाम सिफ़त अक्सर मदौँमैं ज्यादा होती हैं. लिहाज़ा अक्सर मदँ तलाक अक्सर औरतों के मुकाबले में सोच समझ कर देगा, कयों की उसे मालूम है के तलाक के बाद भी बीवी का ईद़त तक का खचँ और बचचौं का बालिग व शादी होने तक का खचँ और बीवीको परवरिश और देखभाल का खचँ, दुसरी शादी के महर वलीमे का खचँ, मदँ के जिम्मे है, ऐसा कोई खचँ औरत के जिम्मे नही है. लिहाज़ा ये सब खचँ ऊसके जिम्मे तलाकके बाद दोबारा आईगे, इसलिये मदँ सोच समझ कर तलाक देगा.
औरत के जिम्मे दुसरी शादी के बाद भी किसी किसम का खचँ उसके जिम्मे नही आयेगा. बल्कि दूसरी शादी की वजह से महर और कपडे वग़ैरह दूसरे शोहर से मिलेगा. लिहाज़ा वह तलाक देनेकी ज्यादा जरुरत करेगी. और अक्सर औरतें जल्दबाज, जजबाती, रंज व गम से जल्दी मुतासीर होने वाली, कम समझ होती हैं . अगर तलाक का ईखतयार उसे दीया जावे तो जितनी तलाक मदँ वाकया करता है उससे दुगनी औरतैं वाकया करती.
मदँ तलाक देने का ईखतयार औरतकोभी दे सकता है, जिसे तफवीज़ कहते हैं. जब मदँ औरत कोतलाक देने का ईखतयार देगा तो औरतभी अपने आप पर तलाक वाकया कर सकती हैं, एक दौर अरब में ऐसाभी गूजरा है कि औरत शादी होते ही तफवीज़ के जरीये तलाक का ईखतयार शौहरसे अपने नाम पर लीखवा लाया करती थी. उस जमानेमे औरतैं मामुली झगड़े में भी तलाक अपने आप को देने के वाकयात बहुत ज्यादा हुए थे.
लिहाज़ा तजुरबा व अकल ईस बातको मान लेती है कि असल तलाक देने का ईखतयार मदौँको ही होना चाहिए.
नोट :- हर सो (100) मे से एक दो औरतें ऐसी भी होती हैं जो मदौँ से ज्यादा अक्लमंद, गुस्से पर काबू रखने वाली वगैरह शिफ़त में मदौँसे आगे होती है, और बाज़ मदँ औरतौंसे ज्यादा नासमझ, जलदबाझ वग़ैरह कमजोरी रखनेवाला होते हैं. लिहाज़ा शरीयतके हुक्मका दारोमदार अक्सर लोगौं के ऐतबार से होता है, बाज़ लोगोके ऐतबारसे नहीं होता.
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