मसतुरात [औरतों के मसाइल]
हैज़ह औरत के साथ रहना
सवाल
औरत हैज़ [m.c:] मासिक या निफ़ास बच्चा पैदा होने के बाद आने वाला खून की हालात में हो तो उस के पास, बैठना, सोना, उस के हाथ का खाना, पीना ये सब जाइज़ है या उस से दूर रहा जाये ?
जवाब
पूछी हुई हालात में ये तमाम काम जाइज़ है बल्कि उस औरत का झूठा : मुंह लगी हुवी ग़िज़ा : खोराक और झूठा पानी पीना भी जाइज़ है उस से दूर रहना उस का कमरह ,रूम अलग करना ये जाहिलों और गैर क़ौमों का तरीक़ह है ऐसा सुलूक उस के साथ हरगिज़ नहीं करना चाहिए इस्लाम ने आकर ये ना रवा सुलूक ख़त्म कर दिया है और औरतों को इज़्ज़त दी
* तहतवी व शामी बाबुल हैज़ से माख़ूज़१. सास की खिदमत करना बहु के ज़िम्मे ज़रुरी है?
२. अगर सास की खिदमत शऱन ज़रुरी नहीं लेकिन शौहर मालदार ना हो के खादिम रखे और कारोबार मे मस्गुल रहेता हो तो बीवी को क्या करना चाहीये?
जवाब
१. बाज़ आदमी इस को बड़ी सादतमंदी समझते हैं के बीवी को अपनी मा का महकूम व मगलूब (नोकरानी-खादिम़ा) बना कर रखे, और उस की बदोलत बीवियों पर बडे बडेजुल्म होते है, सो समज़ लेना चाहिए के बीवी पर फर्ज़-ज़रूरी नहि के सास की खिदमत किया करे, तुम (शोहर-बेटे) सादतमंद हो, खुद खिदमत करो या खिदमत के लिये नोकरलावो,
इस्लाहे इन्किलाबे उम्मत सफा १८८ जिल्द २
२. मज़कूऱा सुरत मे भी ना तो शौहर बीवी को खिदमत पर मजबूर कर सकता है ना तो ज़बरदस्ती खिदमत ले सकती है, लेकिन जब मौक़ा ऐसा हो तो शरियत अखलाक की भीतालिम देती है।
शौहर मालदार हो और खादिम रख भी सकता हो फिर भी बीवी बिला कहे खिदमत करेगी तो शौहर सास और तमाम घरवालों के दिलो मे उस की मुहब्बत, कदर और मरतबाबढेगा और सब के दिल आपस मे जुडेंगे और बीवी अल्लाह के क़ुर्ब और अज्रो-सवाब की मुस्तहिक़ होगी, खुसुसन सास ससुर मुहताज हो तो खिदमत करना बेहतर है, एक दिनये मियां बीवी भी सास और ससुर बनेंगे, ये खिदमत करेंगे तो इनकी आने वाली अवलाद बहु भी खिदमत करेगी,
खुलासा ये है इस बारे मे ना तो सास खिदमत को अपना हक़ समझे ना तो बहु फतवे को लेकर अपने अख्लाकी फराइज़ से गाफिल रहे बेरुखी बरते, बल्के सास, बहु की खिदमतको बहु का एहसास समझे, उस खिदमत मे कुछ कोताही या कमी हो तो गुस्सा करने और बरस ने के बजाये दरगुज़र ( लेट गो) से काम ले और उसकी खिदमत पर तारीफ करे, दुवायें दें और उस का हदीये की सुरत मे कुछ बदला भी दे और सास बहु को अपनी बेटी, और बहु सास को अपनी मा समझे और खिदमत के मौके को गनीमत समझे और उनकीदुवा ले, और उस पर कुछ ना-रवा सुलूक हो तो सब्र से काम ले और उस पर अल्लाह की खुश्नुदी और अपने दर्जे की बुलंद होने की अल्लाह से उम्मीद रखे।
मिसाली दुल्हन सफा ३०७ से ३११ का खुलासा
बीवी को अपनी फॅमिली [घर वालों] से अलग रखने का शरीयत में क्या हुक्म है ?
आज कल घर घर में सास बहु, देरानी जेठानी, ननद भाभी, वगेरह के झगडे होते है,
तो हमें इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए ?
जवाब
शामी में है के अगर बीवी मालदार हो तो उसे अलग घर देना वाजिब है,
दरमियानी दर्जह की हो तो उसी मकान में एक मुस्तक़िल कमरे के अलावा बावर्ची खाना [किचन] बाथ रूम,और टॉयलेट भी अलग होना ज़रूरी है,
गरीब हो तो सिर्फ एक कमरा काफी है, किचन, बाथ रूम, टॉयलेट, मुशतरक [जोईन] हो तो हरज नहीं.
अहसनुल फतवा ५-४७६
बा हवाला रद्दुल मुख़्तार २-७१९
बीवी को ऐसा रूम के पूरा क़ब्ज़ा और इख़्तियार बीवी का हो. देना उस सूरत में है जब शौहर ज़ियादा मालदार न हो, बल्कि दरमियानी दर्जे का हो, [और बीवी को शौहर के घरवालों से तकलीफ न पहुचती हो],
अगर मालदार हो और इस तरह से ताक़त रख सकता हो के अलग घर दे सकता हो या बीवी को घर वालों से तकलीफ पहुचती हो तो अपनी हैसियत के मुवाफ़िक़ बिलकुल अलगमुस्तकिल घर देना वाजिब है, चाहे खरीद कर हो या किराये से हो, या आरियत [इस्तेमाल के लिए] मुफ्त मांग कर हो.
फतवा महमूदियाह सफा ४४७, जिल्द १३ से माख़ूज़
नोट : मकान देने में मिया बीवी दोनों की माली हालात को देखकर दरमियानी किस्म का मकान दिया जायेगा
माख़ूज़ अज़ मारिफुल क़ुरआन जिल्द १
हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ अली थानवी रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते है के
एक आम गलती में अक्सर मर्द मुब्तला है के अलग घर देना अपने ज़िम्मे वाजिब नहीं और बीवी के मुतालाबह के बावजूद माँ बाप के साथ में रखना गुनाह नहीं समझते,
बस अपने अज़ीज़ों-रिश्तेदारों में औरत को ला डालते है,
आगे लिखते है आज कल लोगों की तबीयतों और झगड़ों के वाक़िआत का तक़ाज़ा यह है के अगर औरत साथ में रहने पर राज़ी भी हो और जुदा रहने से सब रिश्तेदार नाखुश भीहो तब भी मस्लिहत यही है के जुदा अलग ही रखे,
उसमे हज़ारों फ़ितने और बुराइयों का दरवाज़ा बांध होता है और इस में चंद रोज़ के लिए रिश्तेदारों का मुंह चढ़ेगा, मगर इस की मस्लिहत फायदे जब सामने आएंगे तो सब खुशहो जायेंगे, खास तौर पर चूल्हा [किचन] तो ज़रूर ही अलाहिदा होना चाहिए, ज़ियादहतर आग इसी चूल्हे से भड़कती है.
इस्लाहे इन्किलाब उम्मत साफ १४३,१४४. जिल्द २
माँ बाप साथ रहने का हुक्म देते हो, और अलग रखने से नाराज़ होते हो,
और बीवी अलग रहने का मुतालबा करती हो, तो माँ बाप की बात ना मानना गुनाह नहीं, बीवी को अलग रखना वाजिब है, माँ बाप की इता'अत वाजिब को छोड़ने में नहीं कीजाएगी.
इमदादुल फतावा २-५२५, ५२६
नोट : माँ बाप बहोत बूढ़े हो, या माँ बाप बीमारी की वजह से खिदमत के मोहताज हो, और कोई दूसरा खिदमत करने वाला ना हो, तो फिर खिदमत का इंतेज़ाम करना या साथरह कर माँ बाप की खिदमत ज़रूरी और मुक़द्दम है.