वोट देने के मसाइल
वोट देना
सही उम्मीदवार ना हो तो वोट देने की शरई हैसियत क्या है??
बासलाहियात और ईमानदार उम्मीदवार ना हो तो वोट देना चाहिये या नहीं,??
जवाब :-
हज़रात मुफ़्ती मुहमद शफी रहमतुल्लाह अलैहि लिखते है जिस का खुलासा है कि वोट की शरई हैसियत 3 है,
1- वकालत :- जिस उम्मीदवार को हम वोट दे रहे हैं हम उसे अपना वकील नायाब बना रहे हैं ,की फलां हमारे ज़रूरत और खिदमत,
आप हमारे जानिब से अंजाम दे देना,
2- शहादत:- हम इस बात की गवाही देते हैं कि फलां शख्स फलां ओहदे और मनसब के लायक है और खिदमत की सलाहियत रखने वाला और अमानतदार है,
3- सिफारिश:- अपने बड़े हाकिम गवर्नर को ये दरखास्त करने के इस शख्श को फलां ओहदा ओर मनसब दे दिया जाये तो बेहतर होगा,,
लिहाज़ा जो उम्मीदवार दुसरे उम्मीदवारों के मुकाबले इन हैसियतों की ऐहलियात- सलाहियत रखता हो उस को वोट देना वाजिब है,
ऐसे उम्मीदवार जिसमे ओहदे की ऐहलियात और सलाहियत दूसरों के मुकाबले में न हो या कम हो उस को सिर्फ रिश्तेदारी दोस्ती, क़ौमियात की बुनियाद पर वोट देना गुनाह है
और वोट ही ना देना गवाही छुपाने के जैसा है,
और अगर ज़ालिम हाकिम मुसल्लत हो गया तो ये ना देने वाले गैर लायक़ को देने वाले भी उस के जीताने में शरीक शुमार होंगे,उसके गुनाह और ज़ुल्म का वबाल उन पर भी होगा,
लिहाज़ा हर मुसलमान मर्द और औरत को सहीह उम्मीदवार ना हो तो भी अपना नुकसान काम करने की निय्यत से भी वोट देना शरअन ज़रूरी है,
नोट:-जवाहिरुल फ़िक़ह से माखूज़
क्या वोट डालना जरूरी है?
जवाब
हा अपने वोट को ईसतेमाल करना शरईन जरुरी है.
ईस बारे मे चंद गलतफहमीयॉ है. पहली गलतफहमी तो सीधे सादे लोगोमें अपनी तबई शराफतकी वजहसे पैदा हुई है, उसका मनशा ईतना बुरा नहीं लेकिन नतिजा बहुत बुरा है. वह गलतफहमीयाँ ये है कि आज की सियासत मकर व फरेब का दुसरा नाम बन चुका है. ईसलिये शरीफ आदमीयौंको ना सियासत मे कोई हिस्सा लेना चाहिए ना ईलेकशन मे खडा होना चाहिए ना वोट डालनेके चक्कर में पडना चाहिए.
ये गलतफहमी खवाह कीतनी भी नेक निय्यत के साथ पैदा हुई हो लेकिन बहरहाल गलत और मुल्क व मिल्लत के लिए सख्त मुजीर-नुकसान देह है. मौजूदा दौरमे हमारी सियासत बिला शुबह मफाद परस्त लोगोंके हाथों गंदगी का एक तालाब बन चुका है, लेकिन जब तक कुछ साफसुथरे लोग आकर पाक करनेके लिए आगे नहीं होंगे तो उस गंदकी मे इजाफा ही होता चला जायेगा. और फिर एक ना एक दिन ये नजासत खुद उनके धरों तक पहुंच कर रहेगी. लिहाज़ा अक्लमंदी और शराफत का तकाजा ये नहीं के सियासतकी इस गंदगी को दुरदुर से बुरा कहा जाता रहे बल्कि अक्लमंदी का तकाजा ये है की सियासत के मैदान को उन लोगों के हाथों से छीन्नेकी कोशिश की जाये जो मुसलसल इसे गंदा कर रहे हैं. हजरत अबुबक्र सिद़िक (रजी.) से रिवायत है कि सरवरे कौनेन सल. ने ईशाद फरमाया.
إن الناس إذا رأوا الظالم فلم يأخذوا على يديه، أوشك أن يعمهم الله بعقابٍ)).أبو داود والترمذي
अगर लोग ज़ालीमको देखकर उस्का हाथ ना पकड़े तो कुछ बईद नहीं के अल्लाह तआ़ला उनसब पर अपना अज़ाब आम नाजील फरमाये
( जमऊल फवाईद सफा -51 जिल्द -2, ब हवाला अबू दावुद व तिरमीजी)
अगर आप खुली आँखों देख रहे है कि जुल्म हो रहा है और ईन्तेखाबात चुनाव की सरगरमीमे हिस्सा ले कर उस जुल्म को किसी न कीसी दरजे में मिटाना आपकी कुदरत में है तो उस हदीस की रो से ये आपका फजँ है कि खामौश बैठनै के बजायेे ज़ालीम का हाथ पकड कर उसको जुल्मसे रौकनेकी मकदुर भर कोशिश करें. बहुत दीनदार लोग समझ ते हैं कि अगर हम वोट ईस्तेमाल नहीं करेंगे तो उससे क्या नूकशान होगा? लेकिन सुनिये........ की सरकारे दो आलम (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) क्या ईशाद फरमाते है? हजरत सोहैल बीन हनिफ (रजी.)से मुस्नद अहमद मे रिवायत है कि आप हजरत (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ईशाद फरमाया.
((من أُذل عنده مؤمن فلم ينصره وهو يقدر على أن ينصره، أذله الله على رءوس الخلائق يوم القيامة)).( جمع الفوائد ج 2 ص10)
" जिस शख्सके सामने किसी मोमिन को जलील किया जा रहा हो ओर वह उस्की मदद पर कुदरत रखनेके बावजूद मदद ना करे तो अल्लाहतआ़ला उसे ( क़यामत के मैदान में) बर सरे आलम रुस्वा करेंगे़"
( ईन्तेखाबातमें वोट की शरई हैसियत.. - हज़रात मुफ्ति तक़ी ऊस्मानि दा. ब. )
उम्मीदवार की जानिब से पैसे और नाश्ते का हुक्म
आजकल वोट देने वाले उमैदवार की जानिब से पैसे,नाशता, खाना दिया जाता है, इसके खाने के बाद फिर उनको वोट देनेके क्या हुक्म है?
जवाब
वोट देना ये गवाही है इस बात की के इस हलके वॉर्ड के जित्ने उम्मीदवार है उन में से ये शख्स उस ओहदे के सबसे लायक व मुनासिब है.
लिहाजा पैसा या खाना खाकर दूसरे लायक व ज्यादा मुनासिब उम्मीदवार को छोड़कर इस गैर लायक व कम मुनासिब आदमी को वोट देने मे डबल गुनाह है.
(1) रिश्वत लेने का........... चूनांचे रिश्वत लेनेवाले पर हदीसशरीफ मे ल़ानत
(अल्लाह का गज़ब, फटकार, जन्नतसे मरहुमी) की वईद आई है.
(2) जुठी गवाही देने का...... जिस्को अल्लाहतआलाने शिर्क के बराबर करार दीया है
लिहाज़ा ऐसे पैसे और खानेसे बचना चाहिए.
किताबूल फतावा 6/263 से माखुझ.